illness
जो शरीर जन्मता हे वह अंत में मृत्यु को प्राप्त होता हे, यह श्रृष्टि का अटल नियम हे ! लेकिन यह बात आज के कमजोर इंसान की समझ से बाहर हे कि आखिर शरीर बीमार पड़ता ही क्यों हे ? उत्तर स्पष्ट हे कि हमारे ही कर्मो के फल हे जो हम शरीर द्वारा दुःख उठा कर भुगत रहे होते हे, और उसका कारण हम किसी और के सर पर डालते हे, जबकि सत्य सिर्फ इतना सा हे कि जो होना हे वह तो होकर ही रहेगा.. श्री रामकृष्ण परमहंस जी से एक बार, उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद जी (नरेंद्र ) ने आज्ञा लेकर उनसे पूछा कि गुरूजी आपके शरीर पर घाव हे फोड़े हो गये हे, और उन फोड़ो में से मवाद भी निकलने लग गया, जबकि जहाँ तक में जानता हु आपने कोई एसा बड़ा पाप नही किया जिसके कारण आपको इतनी कठिन सजा मिल रही हो, तो रामकृष्ण जी मुस्कुराए और बोले कि नरेंद्र बेटा, यह इस जन्म के नही पिछले जन्मो के कर्मो का हिसाब किताब हे जो मै चाहू तो दुखी होकर भुगतू या हंसकर सहन करलू, यही दो रास्ते हे मैरे पास एसी स्थिति में, तो मैंने ख़ुशी वाला रास्ता चुना और यह शरीर हे तब तक ही तो यह फोड़े और मवाद हे, उसके बाद यह शरीर आग के हवाले कर दिया जायेगा, तो जब यह शरीर मैरा हे ही नही तो मैं इस शरीर के रोगों के दुःख से दुखी क्यों रहू! दुखी सिर्फ वही रहता हे जो वास्तविकता से भागता हे और जितना भागता हे उतना ही दुखी रहता हे!
लेकिन अगर आपको लगता हे कि यह शरीर के दुःख अब और सहन नही होते तो उचित मार्गदर्शन हेतु आपकी समस्या अधिक से अधिक १०० शब्दों में लिखकर भेज सकते हें!