वर्तमान भारत के अधिकाँश भारतीय तनाव और क्रोध की चपेट में इस कद्र आ चुके हे कि उन्होंने अपनी ही मुर्खता के कारण, किसी और का नही बल्कि अपना ही जीवन, जीते जी नरकमय बना लिया हे …तनाव के मुख्य तीन कारण …
1. मनुष्य ने सुनना – सोचना – समझना छोड़ दिया…
2. सत्य छोड़ दिया….
3. धर्म छोड़.. सिर्फ कर्म को पकड लिया …
और अंतिम अद्रश्य कारण… हिन्दुओ ने ही हिन्दू धर्म का विरोध और शास्त्रों पर तर्क करना शुरू कर दिया…और परिणाम में आज भारत देश सबसे ज्यादा मानसिक बिमारो कि गणना में, विश्व में नम्बर एक पर हे ! लेकिन आज की जिंदगी उतनी बड़ी सच में हे नही, जितनी हम इसे समझ बैठे हे, लेकिन मौत जरूर सत्य है जो कभी भी आ सकती,
यकींन नहीं ?
आँख बंद करो और सोचो कि … क्या अभी इसी वक्त… भारत में कोई नही मर रहा ?
यह मत भूलो कि… शमशान ने जाने से 1 घण्टे पहले,,,,
हर मुर्दा,,,,,,जिन्दा इंसान हुआ करता हे…!
मानव शरीर में रहते हुए , अगर ?
तनाव कि जगह अगर ” अर्थी” का ” अर्थ ” नहीं समझ पाए तो ?
इस से अच्छा तो सुवर का जन्म पा लेते तो, ज्यादा अच्छा होता ।
आज का मनुष्य दुखी सिर्फ इसलिए हे,,,क्यों कि वह स्वंय को ज्ञानी समझ बता हे,,जबकि सत्य तो सिर्फ यह हे कि हम यह तक नही जानते कि…
वर्तमान भारत के अधिकाँश भारतीय तनाव और क्रोध की चपेट में इस कद्र आ चुके हे कि उन्होंने अपनी ही मुर्खता के कारण, किसी और का नही बल्कि अपना ही जीवन, जीते जी नरकमय बना लिया हे …तनाव के मुख्य तीन कारण …
1. मनुष्य ने सुनना – सोचना – समझना छोड़ दिया….
2. सत्य छोड़ दिया….
3. धर्म छोड़.. सिर्फ कर्म को पकड लिया …
और अंतिम अद्रश्य कारण… हिन्दुओ ने ही हिन्दू धर्म का विरोध और शास्त्रों पर तर्क करना शुरू कर दिया…और परिणाम में आज भारत देश सबसे ज्यादा मानसिक बिमारो कि गणना में, विश्व में नम्बर एक पर हे ! लेकिन आज की जिंदगी उतनी बड़ी सच में हे नही, जितनी हम इसे समझ बैठे हे, लेकिन मौत जरूर सत्य है जो कभी भी आ सकती,
यकींन नहीं ?
आँख बंद करो और सोचो कि … क्या अभी इसी वक्त… भारत में कोई नही मर रहा ?
यह मत भूलो कि… शमशान ने जाने से 1 घण्टे पहले,,,,
हर मुर्दा,,,,,,जिन्दा इंसान हुआ करता हे…!
मानव शरीर में रहते हुए , अगर ?
तनाव कि जगह अगर ” अर्थी” का ” अर्थ ” नहीं समझ पाए तो ?
इस से अच्छा तो सुवर का जन्म पा लेते तो, ज्यादा अच्छा होता ।
आज का मनुष्य दुखी सिर्फ इसलिए हे,,,क्यों कि वह स्वंय को ज्ञानी समझ बता हे,,जबकि सत्य तो सिर्फ यह हे कि हम यह तक नही जानते कि…
क्या ज्ञान हमे हर दुःख से बचा सकता है?
संतो की संगत करने वाला गृहस्थी किसी भी स्थिति में दुखी नही हो सकता।
अगर आपको लगता है आप किसी न किसी कारन से तनाव में हे , तो तुरंत उसे रोकिये, नहीं तो आपकी जिंदगी दुःख बर्बाद कर देगा ।
जब इंसान का बुरा समय शुरू होता है तो सबसे पहले उस से, बुद्धि छीनी जाती है, जब तक बुद्धि रहेगी वो परेशान कैसे हो सकेगा? फिर सत्य छीना जाता है, फिर धर्म विमुखता आती है और फिर सत्यानाश ओर सर्वनाश की शुरूआत होती है, जिसकी आग में कोई ओर नही जलता बल्कि स्वंय ही जलना होता है, क्यों कि जब करा हमने तो भला भरेगा कोई और क्यों? भरेंगे भी हम ही।
दारू से बड़ी है प्रशंसा ….
कानो से उतरती है, ओर होश खराब कर देती है। दारू तो फिर भी लीवर ओर धर्म भृष्ट करती है,
लेकिन यह तो सब कुछ बिना पिलाये ही बर्बाद कर देती है।
मनुष्य जब तक गुरुमुखी होता है, मस्त रहता है,
लेकिन जब मन मुखी हो जाता है. ..तो सब कुछ ???
त्याग धैर्य संयम समझदारी के प्रतीक है ना कि मूर्खता के।
हर अति का अंत अवश्य होता है।
सत्य तप दान दया धर्म के चार पहिये है।
अगर मन मे यह है तो धर्म के भागी बन सकते हो, अन्यथा सब तुम्हारा भृम है।
आपकी समस्या का भविष्य और समाधान… सलाह देने वाले के हाथ मे होता है,,
अब यह आप पर निर्भर करता है कि आपके सलाहकार श्री कृष्ण है या मामा शकुनि।।
मन के घोड़ो को जितना कस के पकड़ोगे,
गिरने का डर उतना ही कम होगा।
मनुष्य ने ब्रह्मांड का 1 प्रतिशत हिस्सा भी नही देखा,फिर भी मूर्ख कहता है तुम मुझे नही जानते, लेकिन में सब जानता हूँ।
मूर्खता की सारी हदें पार
*आज का मनुष्य जानता है कि खाली हाथ मरना है, फिर भी दुनिया भर का बोझ जबर्दस्ती उठाता है।*
*देखे तो बहुत जीव.. लेकिन मनुष्य जैसा कोई क्रोधी नही देखा!*
*जो कर्म समझता है ~ वह धर्म नही समझता…लेकिन जो धर्म समझ लेता है वह कभी क्रोधी नही होता!*

क्या तनाव से गुस्सा आता है या ?
गुस्से से तनाव आता है??
क्रोध और गुस्से में क्या अंतर है?
क्या क्रोधित होने से क्रोधी को फ़ायदा मिलता है??
क्या गुस्से से शांति और सफलता मिलती है?
क्या गुस्सेल व्यक्ति को हर जगह मान सम्मान के साथ पूजा की जाती है?
क्या गुस्सा करना आपकी समझदारी दर्शाता है??
ओर सबसे मुख्य बात….!
गुस्सा आखिर आता ही क्यों है….?
ओर आता है तो जाता क्यों है?
कुछ समय बाद क्यों ओर कैसे … गायब हो जाता है??
मुख्य बात-गुस्सा आता किस जगह से है??
ओर जाने के बाद फिर रहता कहाँ है?
ओर अंत मे… गुस्से के शांत होने के बाद…
गुस्सा हमेशा मनुष्य को रुलाता क्यों है?
कितने परिवारो को गुस्से से शांति मिल गई??
ओर अंत मे…क्या गुस्सेल व्यक्ति समझदार माना जाता है या मूर्ख?
गुस्से का सबसे मुख्य कारण “क्रोध” नहीं होता…
बल्कि “क्रोध” का “विरोध” होता है..
जो क्रोध सहन नही कर सकता…
वह कभी सुखी नही रह सकता…
ओर जो कभी सुखी नही रह सकता..
जो हमेशा दुःखी ही रहता …
वह बेचारा स्वंय का उद्धार कैसे कर सकता…
जो स्वयं का उद्धार नही कर सकता…
वो समझदार कैसे हो सकता…
लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यह है कि…
आज प्रत्येक मनुष्य स्वंय को समझदार समझता जरूर है।
पर वो समझदार होता नही..
क्योंकि अगर वह समझदार होता..
तो फिर दुःखी कैसे रहता…
जो दुःखो को समझने साल समझदार बन जाता…
वह भला फिर ईश्वर को कैसे समझ सकता…
ओर जो ईश्वर को नही समझ सकता ..
भला वो सुखी कैसे रह सकता…
जो मनुष्य शरीर में सुखी नही रह सकता…
वो भला मनुष्य शरीर छोड़ने के बाद किसी करोड़पति के घर जन्म कैसे ले सकता…. ओर जो रोड़पति के घर जन्म लेता.. वह अभागा..
कैसे सुखी रह सकता…
लेकिन चाहे गरीबी में ही सही लेकिन जो मूर्ख …
मनुष्य तन पाकर भी सुखी नही रह सकता…
वो सुवर बनने के बाद अब…
कभी दुःखी नही होता …
क्यों कि सुवर के पास ना दिमाग होता ना घर…
ना खाने का ठिकाना ना पीने का ठिकाना..
ना पत्नी का प्यार, ना अपनो का दुलार,..
अब ना स्वाद का खाना,
ना किसी से कुछ मांगना ना किसी को कुछ देना…
जहाँ पड़ जाओ पड़े रहो…
रोना चाहो तो रोते रहो…
लेकिन अब मनुष्यो को देख देख कर बस यही सोचते रहो…
कि काश में गुस्सा नही करता..
तो आज गुस्से के परिणाम नही भुगत रहा होता…
क्यों कि हमने…
एक ही जीव को कई शरीर बदलते देखा…
लेकिन मनुष्य जैसा बुद्धिमान और मनुष्य जैसा मूर्ख आज तक नही देखा…
हमने मनुष्य को मनुष्य से राक्षस होते देखा…
हमने राक्षस को कुत्ते से बुरी मौत मरते देखा..
उसके मरने के बाद उसी क्रोधी को, कुत्ते की सड़ती हुई विष्ठा से जन्मा कीड़ा बनते देखा..
इस संसार मे हमने देखा तो बहुत कुछ…
लेकिन अपने ही कर्मो से खुद को बचाते हुए, किसी को नही देखा…
इंसान को इंसान काटते देखा,
जानवर को मनुष्य खाते हुए देखा…
लेकिन कर्मो को काट दे,
ऐसा कोई माई का लाल… हमने इस पृथ्वी पर नही देखा…
खेल तो बहुत देखे आदित्य ने,
लेकिन यमराज ~ धर्मराज के खेल जैसे कोई खेल ना देखा…
क्यों???
क्यों कि सिर्फ कुछ पल के क्रोध के कारण,
मनुष्य के सिवाय किसी ओर को गुस्से से, इतनी बुरी तरह बर्बाद होते हुए नही देखा….
कर्म तो बहुत देखे हमने जसोदिया,
लेकिन इतने बुरे परिणाम भुगतते जानवर को कभी नही देखा…
जब भी देखा…मनुष्य को दुःखी ही देखा…
लेकिन… मनुष्य शरीर छीन जाने के बाद…
गन्दा कीड़ा बनने के बाद…
सिर्फ यही विचार बचता है,
कि अगर हम पहले इस “पापी क्रोध” को समझ लेते…
अगर पहले ही “क्रोध के विरोध” को समझ लेते…
तो ईश्वर कसम…
गुस्से के इशारों पर नाचकर कभी स्वंय को बर्बाद ना करते।
क्रोध का विरोध करना सिख जाओ…
इस जन्म के साथ अगले जन्मो जन्मो सुख पाओ…
गुस्से का सबसे मुख्य कारण “क्रोध” नहीं होता…
बल्कि “क्रोध” का “विरोध” होता है..
जो क्रोध सहन नही कर सकता…
वह कभी सुखी नही रह सकता…
ओर जो कभी सुखी नही रह सकता..
जो हमेशा दुःखी ही रहता …
वह बेचारा स्वंय का उद्धार कैसे कर सकता…
जो स्वयं का उद्धार नही कर सकता…
वो समझदार कैसे हो सकता…
लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यह है कि…
आज प्रत्येक मनुष्य स्वंय को समझदार समझता जरूर है।
पर वो समझदार होता नही..
क्योंकि अगर वह समझदार होता..
तो फिर दुःखी कैसे रहता…
जो दुःखो को समझने साल समझदार बन जाता…
वह भला फिर ईश्वर को कैसे समझ सकता…
ओर जो ईश्वर को नही समझ सकता ..
भला वो सुखी कैसे रह सकता…
जो मनुष्य शरीर में सुखी नही रह सकता…
वो भला मनुष्य शरीर छोड़ने के बाद किसी करोड़पति के घर जन्म कैसे ले सकता…. ओर जो रोड़पति के घर जन्म लेता.. वह अभागा..
कैसे सुखी रह सकता…
लेकिन चाहे गरीबी में ही सही लेकिन जो मूर्ख …
मनुष्य तन पाकर भी सुखी नही रह सकता…
वो सुवर बनने के बाद अब…
कभी दुःखी नही होता …
क्यों कि सुवर के पास ना दिमाग होता ना घर…
ना खाने का ठिकाना ना पीने का ठिकाना..
ना पत्नी का प्यार, ना अपनो का दुलार,..
अब ना स्वाद का खाना,
ना किसी से कुछ मांगना ना किसी को कुछ देना…
जहाँ पड़ जाओ पड़े रहो…
रोना चाहो तो रोते रहो…
लेकिन अब मनुष्यो को देख देख कर बस यही सोचते रहो…
कि काश में गुस्सा नही करता..
तो आज गुस्से के परिणाम नही भुगत रहा होता…
क्यों कि हमने…
एक ही जीव को कई शरीर बदलते देखा…
लेकिन मनुष्य जैसा बुद्धिमान और मनुष्य जैसा मूर्ख आज तक नही देखा…
हमने मनुष्य को मनुष्य से राक्षस होते देखा…
हमने राक्षस को कुत्ते से बुरी मौत मरते देखा..
उसके मरने के बाद उसी क्रोधी को, कुत्ते की सड़ती हुई विष्ठा से जन्मा कीड़ा बनते देखा..
इस संसार मे हमने देखा तो बहुत कुछ…
लेकिन अपने ही कर्मो से खुद को बचाते हुए, किसी को नही देखा…
इंसान को इंसान काटते देखा,
जानवर को मनुष्य खाते हुए देखा…
लेकिन कर्मो को काट दे,
ऐसा कोई माई का लाल… हमने इस पृथ्वी पर नही देखा…
खेल तो बहुत देखे आदित्य ने,
लेकिन यमराज ~ धर्मराज के खेल जैसे कोई खेल ना देखा…

कर्ज अगर है तो...क्या तुम्हारे हाथ मे निराकरण है? क्या खुद से यह परेशानी मौल ली है....
- इस सृष्टि में किसी भी जीव~ प्राणी का जन्म बिना किसी कारण के नही होता, कोई सुख भोगने आता है, कोई दुःख, जो कर आया, उसे भरने आता है, उसे चुकाने आता है, उसे भोगने आता है, अब कौन कितना सुखी ओर कौन कितना दुःखी…यह तो उसके कर्म की गठरी पर निर्भर करता है, शरीर एक रेलगाड़ी की तरह है, ट्रैन को कोई फर्क नही पड़ता कि उसकी कौन सी सीट पर कौन बैठा!
- कितनी देर बैठा! कहाँ से चढ़ा! कहाँ उतरा! लेकिन यह जरूर पक्का है कि जिसके पास जैसा टिकट होगा वह उसी डिब्बे में सफर कर पायेगा, जनरल डिब्बे में, भीड़, कीच कीच, शोरगुल,यहाँ तक कि कुछ गंवार भी होते है, लेकिन अगर टिकिट स्लीपर क्लास का है, तो उसमें इन सबसे छुटकारा मिल सकता है,
- लेकिन स्लीपर में सामान चोरी होने का डर ज्यादा रहता, क्यों कि जनरल डिब्बे में, जगह नही होने के कारण सब जागते रहते है, लेकिन स्लिपर में सोए रहते है, लेकिन अगर वातानुकूलित डिब्बा हो और उसमे भी प्रथम श्रेणी का हो तो टिकट की कीमत लगभग 5 से 10 गुना तक बढ़ जाती है, लेकिन वहाँ ना आवाज है, ना भीड़, ना चोरी होने का डर, ना ही मौसम की समस्या।
ठीक ऐसे ही शरीर रेलगाड़ी है, कर्म हमारा टिकट है, ओर भुगतने वाले हम। कर्म सुधार लो, फिर हो सकता है ट्रेन की जगह हवाई जहाज का टिकट मिल जाये।
- लेकिन जो मनुष्य, आत्महत्या कर के, खुद के शरीर की हत्या कर देता है, उसे बाकी दुःखो से मुक्ति नही मिल जाती, बल्कि अब कभी खत्म ना होने वाली तड़प की शुरुआत हो जाती है, क्यों कि जो मनुष्य स्वंय के शरीर की हत्या कर लेता है, वह किसी ओर से नही बल्कि सीधा ईश्वर परमात्मा अल्लाह से दुश्मनी मौल ले लेता है, ओर सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह कि जब शरीर रहते हुए दुःख सहन नही कर पाया,, खुद को- खुद के दुःखो से मुक्त नही कर पाया, वो महा चाण्डाल, महा मूर्ख, महा कायर, अभागा ईश्वर से लड़ पाएगा?? लड़ना तो दूर अब तो चाहकर, फिर से कभी मर तक नही पायेगा, तो अब उस तड़प से मुक्त कब और कैसे हो पायेगा।
दुनिया से लड़ना बहुत ही आसान है, मर्दानगी तो खुद की बुराईयों से लड़ने में है।
समझदार स्वंय को समझदार समझने में नही बल्कि,स्वंय को समझदार बनाने में है।
समझदार समझी मत, समझदार बनो।ज्ञान देना बहुत आसान है, लेकिन स्वंय पर लागू करना सबसे कठिन।
आज का मनुष्य किसी की सुनना नही चाहता, अब जब सुनेगा ही नही तो समझेगा क्या? ओर जब समझेगा ही नही तो खुश कैसे रहेगा? ।
कहता कोई नहीं, शर्म और झूँठी शान में,
लेकिन परेशां आज हर उम्र,जाती,वर्ग,लिंग,सिर्फ और सिर्फ घुट घुट कर जी रहा है,
कलाकार इतना हो गया कि,
दुनिया और खुद से तो दूर,
ईश्वर अल्लाह से झूँठ बोलने वाला हो गया,
मान ले मेरे दोस्त जिन्दा रहते हुए यह बात,
की एक बूंद से तो तू पैदा हुआ, और अंत हे तेरा राख,
मौत आजाएगी बिना प्लान किये,
रह जाने तेरे सब प्लान धरे के धरे,
परेशांन मत हो कि मौत की तैयारी तो आज तक की नही, तो अब होगा क्या ?
समस्या बनती ही समाधान के लिए हे,
स्वंय को समझ ले,
स्वंय को जान ले, स्वंय को जीत ले,
फिर चाहे जो करना,
लेकिन जो लिखा है, वह तो मानना ही पड़ेगा,
क्यू की,
तू मान या ना मान,
अंतिम सांस कोनसी और कब होगी,
और पक्का तुझे उसके बाद समझ भी आ जायेगी,
लेकिन उस वक्त सिर्फ समझ होगी, शरीर नहीं,
जब कभी तनाव महसूस होने लगे,
तो अपना बचपन याद करो…..
ओर खुश रहो..
जिस दिन यह शरीर छूट जाएगा, वो बचपन फिर से जरूर आएगा…फिर कुछ महीनों बाद जन्म..
ओर फिर वही बचपन जरूर आएगा…बस वह बचपन पैसे से नही, कर्म धन से ही मिल पायेगा।
वर्तमान से डरो मत…
यह वर्तमान तो तुरन्त…
एक एक पल में अतीत बनता जा रहा है…
ओर अगर वर्तमान से हार जाओगे …. तो …!
भविष्य कैसे लिख पाओगे..
वर्तमान तो मिट कर अतीत बनने वाला है,
लेकिन भविष्य तो वर्तमान को फाड़कर आने वाला है।
पूरी सृष्टि में 84 लाख शरीरों में से सबसे खुशकिस्मत शरीर कोई है तो वह है मानव शरीर, मनुष्य चाहे जो कर सकता है,
लेकिन मनुष्य शरीर को छोड़कर, बाकी के 83 लाख, 99 हजार, 999 योनियों वाले शरीर क्या खुद के शरीर पर खुजली कर सकते है?? बोल सकते है? प्यार कर सकते है? तरह तरह के भोग विलास कर सकते है??
कुत्ता सुवर भैंस सांप मुर्गी बकरा तोता मोर कबूतर बन्दर क्या स्वंय के शरीर खुजला सकते है? क्या स्वादिष्ट भोजन कर सकते है ??
क्यों?? वो ना अस्पताल जा सकते, ना ठंड से बच सकते ना अपनी मर्जी से खा पी सकते, लेकिन सबसे बड़ी खुशी की बात ओर सबसे बड़ा अफसोस यह है कि, मनुष्य और जानवरों में बहुत गहरा फर्क है,
मनुष्य सब कुछ होते हुए भी दुःखी हो सकता है, ओर आत्महत्या तक कर सकता है, लेकिन एक मात्र मनुष्य शरीर के सिवाय कोई भी शरीर आत्महत्या कर ही नही सकता,
क्यों कि आज के मनुष्य के पास सब कुछ है, लेकिन नही है तो सत्य को सुनने, समझने, ओर मनन कर खुद को समझदार बनाने की शक्ति नही है, क्यों??
क्यों कि मनुष्य ने शास्त्रो को छोड़ा, शास्त्रो ने मनुष्य को छोड़ दिया, ओर परिणाम में आज भारत, पूरे विश्व मे,तनाव में नम्बर एक पर है।
सबसे ज्यादा मानसिक तनाव के शिकार भारत मे है।
जिनमे से 9 करोड़ 90 लाख लोग आंशिक मानसिक तनाव के रजिस्टर्ड मरीज है, ओर इनके अलावा करोड़ो ऐसे है, जिन्हें यह ही नही पता कि उनके साथ क्या हो रहा है, कई ऐसे है जो अपने दोस्तों में तनाव से मुक्ति खोजते है, कई करोड़ो ऐसे है जिन्हें यह ही पता नही की वह वास्तव में डिप्रेशन के शिकार हो चुके है। लेकिन इन सबके पीछे मुख्य कारण ?
1. समझदार समझना सब पसन्द करते है, पर समझदार बनना पसन्द नही। क्यों कि समझदार बन गये तो फिर दुःखी कैसे रह पाएगा, क्यों कि जो दुःखी है, वह समझदार हर्गिज नही हो सकता, ओर जो दुःखी है वो समझदार हर्गिज नही हो सकता।
इसलिए अगर आप दुःखी है तो समझदार बनिये, ओर पहले से समझदार है तो फिर दुःखी क्यों है? क्यों कि समझदार है ही तो फिर दुःखी क्यों है?? समझदार कब से दुःखी होने लग गया? इस स्वंय को सबसे बड़ा बुद्धिमान समझने के भृम से बाहर निकलो, नही तो आपका वर्तमान आप हमसे अच्छा जानते है। और इस से फायदा आपको होगा किसी ओर को नही, क्यों कि दुःखी भी आप है, कोई और नही।
2. जिसने सत्य सुनना छोड़ दिया, सुनाना सिख लिया हो। अब.. भला.. जो सुनना ही नही चाहता, वह सुखी कैसे हो सकता है।
3. अक्ल कुछ नही लेकिन अज्ञान इतना कि किसी की सुनना ही पसन्द नही करता, अब जब सुनेगा ही नही तो समझेगा क्या? ओर जब समझेगा ही नही तो दुःखो से बाहर निकलेगा कैसे?
4. जरूरत से ज्यादा जिंदगी को तवज्जु देना। आज के 15 साल के बालक के अंदर इतनी गर्मी देखने को मिलती है कि अगर कानून शब्द ना हो तो वह ठीक से जमीन से निकला भी नही वह छछुंदर, गुस्से में कब का मर्डर तक कर दे।
5. स्वंय को कर्म ओर भगवान से बड़ा समझना।
आज के 90% मनुष्य यह मानते है कि उनके किये बिना कुछ नही होने वाला और जो कर रहा हु मैं कर रहा हु, बस अब यहीं से हो गई तनावों की शुरुआत, क्यों कि स्वंय को सबसे बड़ा समझने की भूल कर बैठे।
6. ओरो से लड़ना जितना आसान से उतना ही कठिन है, खुद से लड़ना। क्यों कि कोई भी अपनी गलती स्वीकारना नही चाहता, बल्कि सामने वाले को हर कीमत पर गलत साबित करने की कोशिश करना चाहता है, लेकिन जो खुद से लड़ना सिख गया, जिसने अपनी गलती मानना शुरू कर दिया, उसी पल सारे तनाव तुरन्त खत्म। बहादुरी ओरो को चांटा मारने में नही, बल्कि स्वंय के अपमान को सहन करने में है। क्यों कि दुवा बद्दुवा अगर नही लगती होती तो आज इतनी अकस्मात दुर्घटनायें नही होती।
7. दुःख / चिंता / तनाव कोई नापने तोलने, देखने, रखने, खरीदने की कोई सामग्री या वस्तु नही, जिसे दुकान से 5 ग्राम या 5 किलो खरीद लाया जा सके, ना ही यह जेब मे रखने वाली कोई वस्तु है जिसे मर्जी आये, जिसकी जेब में रख दिया जाए, बल्कि दुख चिंता तनाव को कोई और नही,बल्कि हम स्वंय ही हमारे ही मस्तिक्ष में, बड़े प्यार से संभाल कर रखते है। अगर अचानक फोन आ गया कि आपकी पत्नी मर गई ये हो गई चिंता, ओर तुरन्त फोन आ जाये कि पत्नी जिंदा है मरी नही, तो तुरन्त दुःख खत्म। अब इसमें यह बताओ दुःख दिखता कैसा है??

माफ़ी मांग कर दुनिया की हर चीज को जीता जा सकता है।
लेकिन ??
मैं गलत नही हु तो माफ़ी क्यों मांगू??
बस यह शब्द पूरा मनुष्य जीवन सुवर की तरह जीने को मजबूर करने के लिए काफी है।
क्षमा वीरों का दान है।
कायर ना तो क्षमा मांग सकता है, ना ही क्षमा कर सकता है।
सुबह 5 बजे से 6 बजे का समय बाहर खुले आकाश में देखा है???
5 बजे भयँकर अंधेरा होता है!
लेकिन घड़ी चलती है टिक टिक टिक टिक,
ओर समय 5:15 / 5:30 / 5:35 / 5:45 / ओर अँधेरा गायब…..
बस यही है अँधेरे की दुःखो की असली औकात,
इन साले दुःखो को सिर पर मत चढ़ाओ,
इनको इनकी औकात के अनुसार रखो…
दुःख दुःख दुःख दुःख …
साला आखिर यह दुःख है क्या..
यह ना तो कोई वस्तु है, जो बाजार गए और उठा ले आये,
की भाई 5 ग्राम दुःख देना…
या कुछ ऐसा भी नही की जब मन मे आया,
जेब से निकाला,
जमा तो रखा नही तो पास वाले को दे दिया,
यह दुःख ना कही दिखाई देता,
ना कहीं कुर्सी के नीचे, पलंग में या बाथरूम में छिप जाता,
जो पकड़ नही पाते,
अब बात यह समझ नही आई, की अगर दुःख कहीं, दिखता नही, कहीं बिकता नही, कहीं छिपता नही,
तो आखिर यह रहता कहाँ है?
बस अब गया मनुष्य…
जिस जिस ने दुःखो के सबसे खतरनाक विरोधी, एक नम्बर के महाकट्टर दुश्मन, शास्त्रों को पड़ लिया, ओर उनका जीवन मे उनका 1% भी अनुसरण कर लिया,
उसे दुःख तो क्या दुःखो का खानदान भी आ जाये ना, तो उसके दिमाग का बाल बांका तक नही कर सकता।
सलाह हमारी – फैसला आपका।
सूरज (ज्ञान )के होते हुए,
अंधेरे (दुःख) की कोई ताकत नहीं,
जो रौशनी को दबा दे,
लेकिन अज्ञान को चपेट में आया हुआ,,,,
विनाश….विनाश…विनाश…
वर्तमान से अनंत तक,,,
जिंदगी हर कदम,,,,
हर पल मुस्कुराएगी दोस्त,
तू बस जरा,
जिंदगी को करीब से देख तो,,
मौत तो,,, तेरे ना चाहते हुए भी आजाएगी ।
जीवन का रहस्य
हम कौंन हे?
कहाँ से आये?
क्यू आये?
कहाँ जायेंगे?
क्या ले जायेंगे?
क्यूँ नहीं ले जाएँगे?यह ज्ञान हो जाये तो, ना कोर्स की किताबो की जरुरत, न दुःख की कोई ताकत,
लेकिन पैसा नहीं है?
शादी नही हुई?
कर्ज़ बहुत ?
पारिवारिक असंतोष?
दुःख शब्द सिर्फ एक,,,
कारन लाखों !
परिणाम में सिर्फ और सिर्फ ,,,बर्बादी ….
आत्महत्या जैसे विनाशकारी विचार की शुरआत यही से होती है ।
जिसने अपनी निंदा सहन कर ली, उसने पूरे विश्व पर विजय पा ली। – गुरु शुक्राचार्य
जिसने अपने क्रोध को क्षमा से दबा दिया, उसने सैंकड़ो यज्ञों से अधिक फल पा लिया। – गुरु शुक्राचार्य
दुःख का मात्र एक कारण है…
जैसे अगर आपको पता है कि आपकी गाड़ी में 10 लीटर पेट्रोल है, तो आपको बहुत अच्छे से याद होता है कि 10 लीटर पेट्रोल में यह गाड़ी 100 किलोमीटर चलने वाली है, ओर आप उसी के अनुसार, अपनी यात्रा तय करते हो…क्यों कि आपको पता है कि 100 किलोमीटर के बाद, गाड़ी अगर जंगल में बंद हो गई तो..दुःखी किसी ओर को नही स्वंय को ही है होना है,लेकिन अफसोस मनुष्य गाड़ी कितनी ओर कहाँ तक चलेगी यह जानता है इसलिए दुःखो से बच जाता है, लेकिन कर्मो की गाड़ी ओर आत्महत्या के बाद क्या होता है यह नही जानता… ओर परिणामस्वरूप, वह अथाह दुःखो में, भंयकर भयावह निर्जन – निर्जल स्थानों पर कुत्तो सुवर भूत प्रेत चुड़ैलों से भी बहुत ही अत्यधिक भंयकर तड़प में फंस जाता है, ओर सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यह है कि, जंगल मे पेट्रोल खत्म हो भी जाये तो फिर भी, गाड़ी के अंदर ही आराम करके अपना समय निकाल सकता है, लेकिन अगर गाड़ी ही ब्लास्ट हो जाए तो…?
ऐसे ही शरीर का खेल है, जब शरीर ही खत्म कर दिया तो अब भूख कैसे मिटाओगे???
क्यों कि भूख तो लगेगी मतलब लगेगी… ओर 1 हजार करोड़ प्रतिशत लगेगी…
ओर जो मूर्ख यह कहता है कि हम इसे नही मानते,
वो पापी नीच मूर्ख जन्मो जन्मो के महा पापियों की क्या औकात की तुम कुछ मानो या ना मानो…
इस बने बनाये शरीर पर रिसर्च कर कर के आज विज्ञान कहाँ पहुँच गया…
लेकिन इस शरीर को जिस वैज्ञानिक ने तैयार किया…
अंत मे सारे वैज्ञानिक यही क्यों कहते कि…अब दुवा की जरूरत है…मतलब इस शरीर को बनाने वाला ही अब इसे सुधार सकता है।
परिस्थिति ओर दुःख,
दोनो से डरना नही डटना चाहिए,
क्यों कि यह किसी ओर के किये हुए की सजा नही,
बल्कि हमारे ही बुरे कर्म है,
जो दुःखो के बहाने खत्म होने आते है।
लेकिन हम कुछ ज्यादा समझदार….!