-मौत का सच-
“सतयुग” – ‘त्रेता’ – “द्वापर” सहित कलयुग के भी दो हजार अठारह साल” खत्म कर, जींदा शरीरो को मुर्दा बनाकर, राख बनाने वाली शक्ति, कोई और नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ “मौत” हे ! मौत का प्रमुख अस्तित्व शमशान हे ! जहाँ जाने से पहले अच्छे से अच्छा सुरमा और वक्ता भी एकदम चुपचाप हो जाता हे ! जेसे हर मनुष्य के जिन्दगी जीने के अपने अपने कई अच्छे बुरे तरीके हे, वेसे ही मौत की भी अपनी गतिया हे, मौत के भी कुछ तरीके हे, मौत के अपने कुछ नियम हे, कुछ कानून हे ! पर अफ़सोस यह, कि जब मौत आती तब वह बोलने नहीं देती, फिर उसी की चलती इंसान की नहीं, क्यूँ की जिस शरीर के दम पर वह मुर्दा इतना घमण्ड करता था , उसको तो एक पल में शमशान में पहुँचा कर राख करने के बाद शुरुआत होती…. मौत की …! जेसे आज के इंसान को जीव विज्ञानं, मानव विज्ञानं, जीने के अलग अलग तरीके, योग , दान परोपकार, धर्म का ज्ञान हे, ठीक वेसे ही नही, बल्कि..उससे भी अत्यंत आवश्यक हे,हमारे शरीर के अंत के बाद के हमारी स्वंय के हालातो की जानकारी होना , क्यूँ कि मौत ही एक एसा शब्द हे जिससे कोई नहीं बच सका, न कोई बच सकेगा, मृत्यु का रहस्य- मृत्यु विज्ञान का ज्ञान जरुरी हे, क्यूँ कि “मौत” किसी और के शरीर की नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ हमारे ही शरीर की होती हे !
मौत वह हे .. जो कुछ ही समय में कितना ही शक्तिशाली – खूंखार दिग्गज, नेता-अभिनेता, प्रधाननेता, ही क्यूँ ना हो मौत के आते ही, कुछ ही मिनटों में राख बनकर बदल जाते हे और चल देते हे अपने कर्मो की गठरी बाँध कर अपने अगले सफ़र की “बूंद से राख” की और.. और इसका सबूत यह हे कि इधर इंसान मरता हे और उधर किसी की कोख भर जाती हे, अब यह बात और हे कि वह शुद्र के घर में पैदा होगा, ब्राह्मण के घर में, या किसी बहुत ही धनाढ्य के घर में, यह उसके कर्मो के आधार पर निर्भर करेगा, और अगर कर्मो को नही मानते हो तो ? तो सिर्फ आँख बंद क्र इतना सा सोचो कि कुत्ते और सुवर की पत्निया भी माँ केसे बन जाती !
कोई भी स्त्री-पुरुष कितना ही बेहद खुबसूरत क्यों ना हो ?
कोई भी शरीर चाहे कितना ही शक्तिशाली या धनी क्यों न हो ?
कोई भी शरीर चाहे किसी भी धर्म के कितने ही बड़े महान का ही क्यों ना हो ?
सत्य सिर्फ और सिर्फ इतना सा …” जो जन्मा हे वह मरेगा , जो नहीं जन्मा हे ? वह जन्मेगा ..और फिर मरेगा, लेकिन मनुष्य तू..कभी भी मौत से नहीं बच सकता..
आज का जिन्दा इंसान सिर्फ और सिर्फ जिन्दगी की तेयारी कर रहा हे, जबकि सत्य मात्र इतना सा हे कि वह इस जन्म में शरीर लेने के पहले, जो जो कर्म करके आया हे, उन्हें तो भुगतना ही पड़ेगा, जब इंसान संसार में कोई गुनाह करके संसार के कानून से नहीं बच सकता तो ? मनुष्य कि औकात कहा ऊपर वाले के लिखे हुए से बचने की.. नीचे वालों के लिखे से अगर बचेगा भो तो उसके लिए भी वकील चाहिए ! लेकिन मौत के बाद की स्थिति को ना वकील चाहिए न सबूत ..क्यू कि हम जितने भी पाप करते, उन सबके गवाह वेसे भी सूरज-चाँद-आकाश-प्रथ्वी-और वायु ये पांचो पंच तत्व हमेशा हर जिन्दा मनुष्य के साथ रहते और यही मुख्य गवाह और इन्हें कोई खरीद नही सकता, जेसे मौत को खरीद नही सकता ! लेकिन वही मनुष्य अच्छी मौत की नही बल्कि अच्छी जिंदगी की तेयारी करता हे जबकि अचानक चुपचाप आने वाली सिर्फ और सिर्फ मौत हे, जन्म तो 9 महीने पहले बताकर आता हे !