दर्शन

  • तीर्थ – दर्शन – नमाज – इबादत – पूजा – पाठ ये शब्द आते ही आत्मा को एक अलग अनुभव और एक अलग ही आनंद और  सुकून महसूस होते हे ! चाहे जितने भी धर्म के स्थान हो, वंहा जाकर जो अनुभव  होता हे, वह किसी भी व्यक्ति के लिए शब्दों में बयान करना आसान नहीं, क्यों कि वहां  आत्मिक आनंद  का  अनुभव  होता हे, जिसका माध्यम जरुर  शरीर होता हे, परन्तु अनुभव करने वाली आत्मा दिखाई नहीं देती ! लेकिन सबसे बड़ा दुर्भाग्य आज यह कि आज जो लोग नमाज में  जाते, न ही वो नमाज का पालन कर पाते, न ही हिन्दू यह जान पाता   हे कि वह मंदिर में पत्थर की मूर्ति के दिखावटी और अपने स्वार्थ पुरे करवाने के लिए मंदिर दर्शन करने जाता हे या फिर मंदिर में जिनके दर्शन करता हे वह भगवान वाकई में भगवान हे ?
 
  • आज का इन्सान दर्शन करना तो जानता हे लेकिन भगवान शब्द को समझना नहीं चाहता ! “आज का इंसान ईश्वर  की पसंद का कोई कार्य नहीं करता -फिर भी चाहता हे कि ईश्वर उसे पसंद करे”!
 
  • नमाज और हज तो ढेरो जाते हे लेकिन उनके नियमो का पालन कर उनके धर्मो के नियमो का पालन करने में समस्या होती !
 
  • हमे आवश्यकता हे हमारे ही धर्म, हमारे ही प्राणों के आधार, धर्म के रहस्य को समझने की ,, ईश्वर – अल्लाह – गुरु साहिब – जीसस  शब्द की  महिमा इतनी छोटी बिलकुल भी नहीं, जितनी बुरी स्थिति आज के कलयुगी इंसान ने खड़ी कर  दी!
 
  • मंदिर हो या मस्जिद ..ईश्वर हो या अल्लाह ! हे अद्रश्य शक्ति ..और वह साक्षात् हे ..फर्क सिर्फ इतना सा रह गया..हम ही उसे देख नहीं पाए,, हम ही उसे महसूस नही कर पाए.. आज का इन्सान कहता हे कि अगर भगवान हे तो हमारे सामने आये, भूल गए यह बोलने वाले मुर्ख लोग कि, आज का तुच्छ इंसान एक प्रधानमंत्री  या राष्ट्रपति से मिलना तो दूर, अपने ही जिले  के कलेक्टर या  एस पी से तक, आसानी से नही मिल सकता,और… मिलना चाहता हे… संसार के पालनकर्ता से ? इंसान हेसियत से कुछ  ज्यादा पागल हो जाता हे ! यहीं आकर समस्त दर्शनों का अर्थ अनर्थ हो जाता, ईश्वर हो या अल्लाह , यीशु हो या गुरु ग्रन्थ साहिब, सबके अंदर मानवता दया और विनम्रता थी, लेकिन उनके अनुयायियों में आज सिर्फ और सिर्फ हिंसा हे! हमे तीर्थ दर्शन के लिये  सर्वप्रथम आवश्यकता होती हे धेर्य ओर नम्रता की, उसी के बाद सारे दर्शन आत्मिकता से सम्भव हे ! फिर आपको  ईश्वर भी दिखाई देगा और अल्लाह भी, और जब दर्शन हो जाते , तब आप और हम कुछ बोलने लायक रहते ही नही, क्यों कि तब तक हमारी बुद्धि का निखर और ज्ञान विस्तार हो चूका होता हे !
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