ऋषिकेश का अपना धार्मिक महत्व है।
सृष्टि के प्रारंभ काल में जब समुद्र मंथन हुआ था, उसी समय समुद्र मंथन के दौरान मंथन से जो विष निकला था, वह विष शिव जी ने इसी स्थान पर पिया था। विष पीने के बाद उनका गला नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना गया।
भगवान राम ने भी वनवास के दौरान यहाँ के जंगलों में अपना समय व्यतीत किया था। रस्सी से बना लक्ष्मण झूला आज भी इसका प्रमाण माना जाता है। 1939 ई० में लक्ष्मण झूले का पुनर्निर्माण किया गया।
तपस्वी ऋषि रैभ्य ने भी यहाँ ईश्वर के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी। और अंत में उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान हृषीकेश के रूप में प्रकट हुए थे। तब से इस स्थान को ऋषिकेश नाम से जाना जाता है।
हिमालय का प्रवेश द्वार, ऋषिकेश जहाँ पहुँचकर गंगा पर्वतमालाओं को पीछे छोड़ समतल धरातल की तरफ आगे बढ़ जाती है। ऋषिकेश का शांत वातावरण कई विख्यात आश्रमों का घर है। उत्तराखण्ड में समुद्र तल से 1360 फीट की ऊंचाई पर स्थित ऋषिकेश भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में एक है। हिमालय की निचली पहाड़ियों और प्राकृतिक सुन्दरता से घिरे इस धार्मिक स्थान से बहती गंगा नदी इसे अतुल्य बनाती है। ऋषिकेश को केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्वार माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। हर साल यहाँ के आश्रमों के बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं। अनेकोनेक भारतीय आस्था श्रध्दा और ईश्वर के चरणों में नतमस्तक होने वाले कई भारतीयों के साथ साथ कई विदेशी पर्यटक भी यहाँ अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य के साथ आत्मिक अध्यात्म का अनुभव और दर्शन लाभ लेते हुए, आध्यात्मिक सुख की चाह में नियमित रूप से आते ही रहते हैं।











